डी. डी. पंत (देवी दत्त पंत)

जन्म 14 अगस्त 1919

मृत्यु 9 मई 2001

परिचय

प्रो. डीडी पंत का नाम सामने आते ही यकीं नहीं होता कि कोई एक साथ इतनी प्रतिभा व उपलब्धियां पा सकता है। सर सीवी रमण के मेधावी शिष्य, अंतरराष्ट्रीय स्तर के भौतिक विज्ञानी, कुमाऊं विवि के पहले कुलपति और फोटो फिजिक्स लैब को कबाड़ से तैयार करना कोई साधारण काम नहीं है।

शिक्षा एवं प्रारंभिक जीवन

प्रसिद्ध भौतिक विज्ञानी प्रो. देवीदत्त पन्त का जन्म 14 अगस्त 1919 में पिथौरागढ़ जिले के गंगोलीहाट ब्लॉक के दूरस्थ गांव देवराड़ी में हुआ था। प्राथमिक शिक्षा गांव के स्कूल में हुई। बता दें कि क्षेत्रीय पार्टी उत्तराखंड क्रांति दल की स्थापना करने वाले डॉक्टर डीडी पंत का जन्म 14 अगस्त 1919 को पिथौरागढ़ के गंगाली में वैद्य अंबा दत्त पंत के यहां हुआ था.

स्वर्गीय डीडी पंत ने अल्मोड़ा से सन 1936 और 1938 में हाईस्कूल और इंटरमीडिएट किया. उसके बाद उन्होंने हिंदू विश्वविद्यालय बनारस से बीएससी और एमएससी की. जिसके बाद उसी विश्वविद्यालय से भौतिक विज्ञान के प्रोफेसर आसुंदी के निर्देशन में पीएचडी की.

उनकी कुशाग्र बुद्ध गांव में चर्चा का विषय बनी तो पिता के सपनों को भी पंख लगने लगे। किसी तरह बेटे को कांडा के जूनियर हाईस्कूल और बाद में इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई के लिए अल्मोड़ा भेजा।

उनकी कुशाग्र बुद्ध गांव में चर्चा का विषय बनी तो पिता के सपनों को भी पंख लगने लगे। किसी तरह बेटे को कांडा के जूनियर हाईस्कूल और बाद में इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई के लिए अल्मोड़ा भेजा।

बीएचयू से मिला प्रतिभा को रास्ता

इंटरमीडिएट के बाद प्रो. डीडी. पन्त ने बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी (BHU) में दाखिला लिया और वहां से भौतिक विज्ञान में मास्टर्स डिग्री हासिल की। ख्यातिनाम विभागाध्यक्ष प्रो. आसुंदी को इस प्रतिभाशाली छात्र से बेहद स्नेह था। डीडी. पन्त उन्हीं के निर्देशन में पीएचडी करना चाहते थे।

आसुंदी ने उन्हें बेंगलूर में सीवी रमन साहब के पास जाकर रिसर्च करने को कहा। अनेक संघर्षों के बाद देवराड़ी के यह देवी दत्त महान वैज्ञानिक सर सीवी रमन के शिष्य बन गए और देश और दुनिया भर में प्रो. डीडी पंत के नाम से विख्यात हुआ।

डीएसबी में तैयार की आधुनिक फोटो फिजिक्स लैब

बीती सदी के पांचवें दशक में जब नैनीताल में डीएसबी कालेज की स्थापना हुई तो प्रो. डीडी. पन्त भौतिक विज्ञान विभाग का अध्यक्ष पद संभालने आगरा कालेज से यहां पहुंचे। उन्होंने यहां फोटोफिजिक्स लैब की बुनियाद डाली। उन्होंने लैब का पहला टाइम डोमेन स्पेक्ट्रोमीटर तैयार किया।

जाने-माने भौतिकशास्त्री और इप्टा (इंडियन फिजिक्स टीचर्स ऐसोसिएशन) के संस्थापक डीपी. खण्डेलवाल उनके पहले शोधछात्र बने इस उपकरण की मदद से उन्होंने अपने जीवन का सबसे महत्वपूर्ण शोधकार्य किया।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर धूम

यूरेनियम के लवणों की स्पेक्ट्रोस्कोपी पर हुए इस शोध ने देश-विदेश में धूम मचाई। इस विषय पर लिखी गई अब तक की सबसे चर्चित पुस्तक (फोटोकेमिस्ट्री ऑफ यूरेनाइल कंपाउंड्स, ले. राबिनोविच एव बैडफोर्ड) में पन्त और खण्डेलवाल के काम का दर्जनों बार उल्लेख हुआ है।

ये मिले सम्मान

उनकी शैक्षणिक उपलब्धियों के लिए उन्हें कई सम्मान प्रदान किए गए और उन्हें संयुक्त राज्य अमेरिका के नोबेल पुरस्कार विजेता प्रो. एम. काशा और ओटावा में हैजबर्ग की लैब में फुलब्राइट स्कॉलर (1960-61) के रूप में काम करने का अवसर मिला। उन्हें रमन शताब्दी स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया था। उन्हें प्रोफेसर असुंडी शताब्दी पुरस्कार प्राप्त करने वाले पहले वैज्ञानिक होने का दुर्लभ गौरव प्राप्त था।

कुमाऊं विवि के प्रथम वीसी

प्रो. डीडी. पन्त एक महान शिक्षक रहे हैं। उन्होंने ने अपने जीवन काल में 20 पीएचडी छात्रों के शोध का पर्यवेक्षण किया है। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में 150 शोध पत्र प्रकाशित किए हैं। 1973-77 तक प्रो. पन्त कुमाऊ विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर रहे। 

प्रो. पन्त कुमाऊं विश्वविद्यालय के पहले वाइस चांसलर थे। उनकी प्रयोगशाला के सभी पीएचडी छात्र अच्छे शिक्षकों और वैज्ञानिकों के रूप में विकसित हुए हैं और भारत और विदेशों में अग्रणी संस्थानों में काम कर रहे हैं।

लैब में निरंतर हो रहा शोध

फोटोफिजिक्स लैब के 36 से अधिक छात्रों को डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया गया है। डीआइसी निदेशक प्रो संजय पंत के अनुसार पीएचडी पूरा करने के बाद अधिकांश छात्रों ने पोस्ट डॉक्टरल फेलो के रूप में विदेशों में विभिन्न प्रयोगशालाओं में काम किया है। इस प्रयोगशाला के कई छात्र प्रतिष्ठित राष्ट्रीय प्रयोगशाला और विदेशों में काम कर रहे हैं।

डॉ. डीडी पंत के जीवन पर प्रकाश डालते हुए यूकेडी के संरक्षक त्रिवेंद्र पंवार ने कहा कि वे इतने बड़े व्यक्तित्व के धनी होने के भी सम्मान और प्रतिष्ठा से सैकड़ों दूर रहे. वे उत्तराखंड और पहाड़ के दर्द को बखूबी समझते थे. पहाड़ का सर्वांगीण विकास कैसे होगा, इसी सोच को लेकर उन्होंने 24- 25 जुलाई 1979 को उत्तराखंड क्रांति दल की स्थापना की थी. उस दौरान 1938 से लगातार व्यक्तिगत व मंचों के माध्यम से उत्तराखंड राज्य की मांग उठ रही थी, लेकिन राजनीतिक एजेंडे के रूप में सबसे पहले डॉक्टर डीडी पंत की अगुवाई में उत्तराखंड क्रांति दल ने अलग राज्य की मांग उठाई. जिसके बाद उत्तराखंड राज्य आंदोलन की शुरुआत हुई. त्रिवेंद्र पंवार ने बताया कि सबसे पहले उन्होंने राज्य का पानी और जवानी को बचाने की बात कही थी.

अपने आगे के शोध के लिए वो देश के प्रथम नोबेल पुरस्कार से सम्मानित सीवी रमन से जुड़े. डॉ डीडी पंत आगरा यूनिवर्सिटी में प्रवक्ता भी रहे. इसके अलावा 1971- 72 में शिक्षा निदेशक रहने के बाद गोविंद बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय पंतनगर में डीन पद पर भी रहे. डॉक्टर पंत ही थे जिन्होंने कुमाऊं यूनिवर्सिटी के प्रथम कुलपति का कार्यभार ग्रहण किया था.