काशी सिंह ऐरी

जन्म 1 जून 1953

उत्तराखंड क्रांति दल के नेता और संस्थापक सदस्य

काशी सिंह ऐरी

परिचय (Introduction)

काशी सिंह ऐरी ( हिंदी : काशी सिंह ऐरी; जन्म 1 जून 1953) उत्तराखंड क्रांति दल के नेता और संस्थापक सदस्य हैं और उत्तर प्रदेश विधानसभा और उत्तराखंड विधानसभा के पूर्व सदस्य हैं । [ 2 ] उन्होंने 1979 में बिपिन चंद्र त्रिपाठी , डीडी पंत और इंद्रमणि बडोनी के साथ मिलकर पार्टी की स्थापना की ।

प्रारंभिक जीवन

काशी सिंह ऐरी का जन्म 1 जून 1953 को पिथौरागढ़ के धारचूला के पंथागांव में केहर सिंह और माता सुनीता देवी के घर हुआ था। उनकी प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा बलुवाकोट में हुई । उन्होंने जीआईसी नारायण नगर, डीडीहाट से इंटरमीडिएट की शिक्षा पास की और स्नातक की पढ़ाई के लिए पिथौरागढ़ चले गए , छात्र नेतृत्व शुरू किया, 1973 में वे छात्र संघ जीपीजीसी पिथौरागढ़ के उपाध्यक्ष चुने गए। बीएससी पूरा करने के बाद वे उच्च शिक्षा के लिए नैनीताल चले गए, जहाँ उन्होंने कुमाऊँ विश्वविद्यालय से एमएससी (वनस्पति विज्ञान) और एमए (सामाजिक विज्ञान) {स्वर्ण पदक} में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की , और लखनऊ , उत्तर प्रदेश से एलएलबी की उपाधि प्राप्त की ।

राजनीतिक कैरियर

उत्तराखंड राज्य आंदोलन के एक कार्यकर्ता के रूप में, उन्होंने 25 जुलाई 1979 को मसूरी में बिपिन चंद्र त्रिपाठी , डीडी पंत और इंद्रमणि बडोनी के साथ उत्तराखंड क्रांति दल की स्थापना की। उन्होंने डीडीहाट विधानसभा क्षेत्र से उत्तर प्रदेश विधान सभा में तीन बार (1985-89, 1989-91 और 1993-96) विधायक के रूप में कार्य किया और 9 नवंबर 2000 को नए राज्य उत्तराखंड (तब उत्तरांचल) के निर्माण के बाद उन्होंने प्रथम उत्तराखंड विधान सभा (2002-07) में भी सदस्य के रूप में कार्य किया ।

उत्तराखंड बनने से पहले यूपी के दौर से पहाड़ की सियासत में एक नाम जो सबसे अधिक चर्चित रहा, वो है काशी सिंह ऐरी. राज्य की क्षेत्रीय राजनीति में अहमियत रखने वाले उत्तराखंड क्रांति दल के नेता ऐरी को एक दौर में उत्तराखंड का पर्याय समझा जाता था, लेकिन अब ऐरी का चुनावी राजनीति से पूरी तरह मोहभंग हो चुका है । 37 साल के इतिहास में  2022  में ये पहला मौका था ,जब उत्तराखंड के चुनावी रण में ऐरी नहीं दिखाई  दिए . उस समय के  मौजूदा सियासत के लिए खुद को अनुकूल न मानने वाले ऐरी ने चुनावों से तौबा क्यों की है? इसके कारण बताते हुए वह राजनीति के मूल्यों पर एक बहस भी छेड़ रहे हैं ।

एक दौर था, जब उत्तराखंड से बाहर पहाड़ के जिन गिने-चुने नेताओं को जाना जाता था, उनमें अहम नाम काशी सिंह ऐरी का था. ऐरी ने यूपी के दौर में डीडीहाट विधानसभा से यूकेडी के बैनर तले 1985 में पहली बार विधायक का चुनाव जीता. फिर 1989 और 1993 में भी वह विधायक बने. तब ऐरी की लोकप्रियता ये थी कि अल्मोड़ा-पिथौरागढ़ लोकसभा से सांसद का चुनाव वह सिर्फ 9000 वोटों से हारे थे जबकि इसी चुनाव में बीजेपी के कद्दावर नेता भगत सिंह कोश्यारी को सिर्फ 36,000 वोट मिले थे. अब हालात ये हैं कि ऐरी ने खुद को चुनावी राजनीति से दूर कर लिया है.

क्यों चुनाव से दूर हुए ऐरी?

ऐरी कहते हैं कि वर्तमान राजनीतिक हालात उन जैसे नेताओं के लिए मुफ़ीद नही रह गए. वह कहते हैं, ‘अब चुनावों में पैसों का बोलबाला है और हम पैसों के पीछे कभी नहीं भागे.’ ऐरी के मुताबिक उन जैसे नेताओं ने संघर्ष ज़रूर किया, लेकिन अब नतीजा ये है कि बदली हुई राजनीतिक परिस्थितियों में वह खुद को फिट नहीं पा रहे हैं |